इतिहास
माता मन्त्रा देवी मन्दिर
हरियाणा राज्य के शिवालिक पर्वत श्रृखलाओ में से सबसे ऊँची पहाड़ी में स्थित यह माँ मन्त्रा देवी का मन्दिर आदिबद्री से लगभग 2.5 की0मी0 ऊपर पर्वत श्रृंखलाओं में विद्यमान है। मन्त्रों से प्रकट हुई माता समस्त भारतवर्ष में केवल इसी स्थान पर स्थित है। यहाँ एक सुन्दर गुफा में नर-नारायण की आद्वितीय, लौकिक एवं मनमोहक दो मूर्तियाँ एक ही लाल पत्थर में पिण्ड के रूप में विराजमान है।
श्री केदारनाथ जी शिव मन्दिर
श्री केदारनाथ जी शिव मन्दिर भी द्वावर युग का श्री नारायण की तपो उर्जा का वरदान है। पाण्डवों द्वारा महाभारत समाप्ति के बाद जब हिमालय की चोटी की ओर बढ़े तो सबसे पहले सिन्धुवन में आदि केदारनाथ का जलाभिषेक कर उत्तराखण्ड की चारों धाम की यात्रा पर गये।
कपाल मोचन सरोवर
पुराणों में कपाल मोचन तीर्थ का प्राचीन नाम सोमसर एवं औशनस तीर्थ था जिसका वर्णन महाभारत और बामन महापुराण में मौजूद है। स्कन्द पुराण के अनुसार कपालमोचन बहुत प्राचीन तथ ब्रह्म हत्या नाशक पुत्रधन आदि सब कामनायें पूरी करने वाला पवित्र तीर्थ है। प्राचीन काल में पद्यकल्प में ब्रह्म जी ने यज्ञ कराने के लिए तीन कुण्ड बनवाये। वे ही प्लक्ष, सोम सरोवर तथा ऋण मोचन हुए। सोम सरोवर का नाम भगवान शकंर ने कपालमोचन रखा। ब्रह्म का सिर काटने के कारण भगवान शंकर को ब्रह्म हत्या का भयंकर पाप लगा। उनके हाथ में ब्रह्मा के सिर के समान चिन्ह (निशान) हो गया। सब तीर्थों में स्नान, दान आदि करने से भी यह चिन्ह (निशान) दूर न हुआ। उन्होंने उसी क्षेत्र की भद्रावती नाम की नगरी में देव शर्मा नाम के ब्राहमण के घर उसकी गऊ के बछडे़ से सोम सरोवर में करने से ब्रह्म हत्या दूर हाने की महिमा सुनी और देव शर्मा को मारने के कारण गऊ के बछडे़ तथा गऊ को लगी ब्रह्म हत्या को इसमें स्नान से दूर होते देखा, तब भगवान शंकर ने उसका नाम कपाल मोचन रख दिया। त्रेता युग में भगवान राम जी ने रावण को मारने के बाद ब्रह्म हत्या दूर करने के लिए परिवार सहित आए। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण व पांण्डव यहाँ आए। उन्होने गुरू द्रोणाचार्य का वध किया था। इसी कारण पाण्डवों ने यहीं पर स्नान कर ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति पाई। एक कथा के अनुसार ब्राह्मण की हत्या के कारण बछडे़ व उसकी माता को ब्रह्म हत्या का घोर पाप लगा जिसे बछडे़ व गाय का रंग काला पड़ गया। गाय और बछडे़ ने इसी सरोवर में स्नान किया और वह इस पाप से मुक्त हो गये। पुनः दानों का रगं सफेद हो गया।
गुरूद्वारा श्री कपाल मोचन
यह गुरूद्वारा दशम् गुरू श्री गोबिन्द सिंह की इस स्थान की यात्रा के उपलक्ष में बनाया गया है जो भंगानी साहिब के युद्ध के बाद यहां कुछ दिनों के लिए विश्राम के लिए रूके थे। कपालमोचन सरोवर के पुजारी के पास एक प्राचीन शिलालेख और गुरू गोबिन्द सिंह प्रदत हुक्मनामा आज भी सुरक्षित है सिक्खों के दशम् गुरू गोबिन्द सिंह भंगानी साहिब के युद्व के बाद यहां 52 दिन रूके। उन्होंने ऋण मोचन और कपाल मोचन में स्नान किया और अपने अस्त्र-शस्त्र धोए। कपाल मोचन और ऋण मोचन तीर्थों के बीच एक प्राचीन अष्टकोण गुरूद्वारा है। उन्होंने कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरू नानक देव के पर्व ‘गुरू पर्व‘ को मनाने वालों की सारी कामनाएं पूरी होने का वरदान दिया, जिस कारण आज तक इस अवसर पर यहां लाखों गुरू भक्त आकर यहां गुरूद्वारे में गुरूपर्व मनाते हैं। गुरू नानक देव जी भी यहंा एक बार आए तथा गुरू गोबिंद सिहं कपाल मोचन तीर्थ पर दो बार आए। गुरू गोविंद सिंह जी ने इसी स्थान पर अपना घोड़ा बांधा था।
मन्दिर श्री बद्री नारायण
यह स्थान भगवान श्री आदिबद्री नारायण का प्राचीन आवास माना जाता है। जन श्रुतियों के अनुसार भगवान विष्णु ने सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तीनों युगों में इस स्थान पर वास किया व कलियुग के आगमन पर भी वर्तमान में उत्तरांचल के प्रसिद्व तीर्थ स्थल बद्री धाम चले गये इससे पहले भगवान श्री विष्णु आदिबद्री धाम आये थे। इसलिए इस स्थान को प्राचीनतम होने का गौरव प्राप्त है। श्री आदि बद्री: श्री आदिबद्री भगवान नारायण की तपस्थली है। यहां पर भगवान ने तपस्या पूर्ण कर उत्तराखण्ड को प्रस्थान किया। तब से इस स्थान का नाम आदिबद्री नारायण पड़ा। यहाँ भगवान नारायण जी का विग्रह शालिग्राम रूप में है। सिन्धुवन शिवालिक पर्वत माला में स्थित मन्दिर श्री आदिबद्री नारायण विष्णु के रूप में विख्यात है। यह मन्दिर कपालमोचन तीर्थ से 18 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित है। आद्रिबद्री मन्दिर के साथ लगभग 500 मीटर की दूरी पर सरस्वती उद्गम स्थल व सरस्वती सरोवर स्थित है। यहाँ आज भी नियमित रूप से जल प्रवाह हो रहा है। यहाँ सोम और सरस्वती का मिलन होता है। पुरातत्व विभाग का संग्रहालय भी इसी स्थान पर स्थित है जोकि इस स्थान की गरिमा को और अधिक बढ़ा देता है। इस सिन्धुवन शिावालिक पर्वत माला में स्थित चार धाम:- 1. मन्दिर श्री आदिबद्री नारायण भगवान विष्णु की तपो स्थली। 2. मन्दिर श्री आदि केदारनाथ स्वंयभू शिव लिगं। 3. सरस्वती उद्गम स्थल जहाँ महाऋषि वेदव्यास जी ने आचमन करने के बाद श्रीमद्भागवत पुराण की रचना की। 4. माता मन्त्रा देवी मन्दिर, पूरे जगत में एक मात्र मंत्रों द्वारा उत्पन्न माता मन्त्रा देवी का मन्दिर पर्वत की चोटी पर स्थित है।
सरस्वती उद्गम स्थल
हरियाणा के जिला यमुनानगर श्री आदिबद्री क्षेत्र में सरस्वती तट पर स्थित तिहासिक और पुरातात्विक स्थलों जैसे आदिबद्री सरस्वती उद्गम स्थल है। वहां आज भी सुजारूप से जल प्रवाह हो रहा है। यहाँ सोम और सरस्वती का मिलन होता है।
गुरू गोबिन्द सिंह मार्शल आर्ट म्यूजियम
यह सगंराहालय 6 एकड 8 कनाल 4 मरला भूमि पर बनाया गया है। इस संग्रहालय को तीन हिस्सों में बांटकर बनाया गया है जिसमें प्रदर्शनी हाल, स्टेडियम व डोरमैटरी ब्लाक शामिल है। प्रदर्शनी हाल 741 वर्गफुट में बनाया है, जिसमें 9 प्रदर्शनी विण्डो गोलाकार रूप में बनाई गई है। इन विण्डों में मार्शल आर्टस से जुडे़ अस्त्र शस्त्र प्रदर्शित किय गए हैं। इसी स्थान पर एक ओपन एयर थियेटर भी बनाया गया है। यहीं पर एक शानदार विश्राम गृह भी स्थापित किया गया है जहां पर बाहर से आने वाले लोगों के ठहरने की बेहतरीन व्यवस्था की गई है। युद्ध कला सगं्रहालय में रखने के लिए हथियार मंगवाए गए हैं जबकि संग्रहालय के बाहर दो पहरेदार तथा एक घोडे़ पर सवार सिक्ख सैनिक की मूर्ति वहां स्थापित की जा चुकी है। म्यूजियम को और अधिक भव्य बनाए जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
सूरजकुण्ड
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार सिंधु वन के इस पवित्र स्थान पर माता कुंती ने सूर्य देव की तपस्या की जिसके कारण उन्हें कर्ण नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। सूरज कुण्ड सरोवर में स्नान करने से आत्मिक शान्ति मिलती है तथा दुखों और क्लेशों से छुटकारा मिलता है और व्यक्ति के सूरजकुण्ड सरोवर में स्नान करने से ज्ञान में वृद्धि होती है।
गौ बच्छआ घाट
कपालमोचन सरोवर के एक ओर काला गौ-बच्चा है और एक छोर पर सफेद गौ-बच्चा घाट है। कार्तिक पूर्णिमा पर जब उन्होंने कपालमोचन सरोवर में स्नान किया, तो उनका रंग सफेद हो गया और वे हत्या के पाप से मुक्त हो गए। कार्तिक पूर्णिमा पर गुरु गोबिंद सिंह और गुरु नानक देव जी भी यहां आए थे। तब से सिखों ने यहां गुरु नानक देव जी का जन्मदिन मनाना शुरू कर दिया। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा पर यहां मेला शुरू हुआ।
ऋणमोचन सरोवर
एक जन श्रुति के अनुसार इस तालाब में स्नान करने से मनुष्य सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के साथ ठहरकर यज्ञ किया और पाण्डवों के पूर्वज का पिण्डदान करवाया तथा पाण्डव पितृ ऋण से मुक्त हुए। पितृ ऋण से मुक्त होने के कारण यह सरोवर ऋण मोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।